हम आपको ले चलते है, महानदी के उद्गम स्थान सिहावा। श्रृंगी ऋषि की धरा ... नगरी से मात्र 6 किलोमीटर की दुरी पर बसा है देऊरपारा ... बहुत छोटा सा गाँव... सरल से लोग .. जंगलो और पहाड़ो के बीच मनोरम सी प्रकृति की अनुपम सौगात है ये जमीन .... घुमने का शौक ले जाता है हमे सिहावा नगरी में ... महानदी के पावन उद्गम स्थल का अवलोकन करते हम अपने साथियों के साथ ....और वहां के कुछ स्थानीय लोगो से वार्ता कर रहे थे . वे सुना रहे थे कि यह स्थान भगवन परशुराम जी से भी जुड़ा हुआ है .. उपर पहाड़ी में उनका भी मंदिर है... आदि आदि............।गाँव में घूमते हुए हम यहाँ के प्रसिद्ध कर्णेश्वर मंदिर पहुँचते है , वहां हमारी मुलाकात होती है .. लाल रंग कि साड़ी पहने एक महिला से उससे बातचीत का सिलसिला आरम्भ होता है............
इसका नाम रामेश्वरी है, यहीं देऊर पारा में रहती है, घर के कार्य से समय निकाल कर समाज सेवा करती हैं और गाँव की महिलाओं को अधिकारों के प्रति जागरुक करने का प्रयास करती हैं। बातो का सिलसिला लगभग २ घंटे तक यूँ ही चलता रहा, इस बीच मंदिर का पुजारी, गाँव के अन्य बड़े बुजुर्ग, और काफी महिलाएं भी हमारे साथ आकर जुड़ते जाती है...हमारी जिज्ञासा बढ़ते जाती है, रामेश्वरी का व्यक्तित्व प्रभावशाली है और हम उस बीहड़ में रहने वाली रामेश्वरी साहू को और अधिक जानने का प्रयास करते है.... जो तस्वीर उनकी हमारे सामने आई, वो इस प्रकार है। मात्र आठंवी तक पढ़ी रामेश्वरी गाँव में सन १९८८ से प्रौढशिक्षा के माध्यम से अपने ग्रामवासी को शिक्षित करने का सतत प्रयास कर रही है, जिससे कई लोग जो पहले अंगूठा लगाते थे अब अपना नाम लिखना सीख गये है। १९९७ में उसने राजनीति के क्षेत्र में भी कदम रखा. जब महिलाओ के लिए कोई आरक्षण नही था, वो तीन पंचायतो छिपलीपारा, बिद्गुड़ी और भडसिवाना से जनपद सदस्य के रूप पहला चुनाव जीती। सहकारी समिति का चुनाव भी जीतकर वो समिति की उपाध्यक्षा बनी।
समाजसेवा के क्षेत्र में उसके अद्भुत रूप से हमारा परिचय हुआ, वह अनेक योजनाओ के माध्यम से अपने और आसपास के गांवो की महिलाओ और लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण देती है और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है ! अनेक शासकीय योजनाओ का लाभ अपने ग्रामवासी को मिले इस लिए खादी ग्रामोद्योग के सहयोग से देवपुर में ३ माह का सिलाई प्रशिक्षण भी दिया, साथ ही गाँव भीतररास की अत्यंत ही गरीब महिलाओ को निःशुल्क प्रशिक्षण अपनी ओर से भी दिया, जिसका सुखद परिणाम ये है कि वो आज इसे अपने व्यवसाय के रूप में अपनाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई है !
२००१ में देउरपारा के राजकुमार भट्ट कि पत्नी धन्वन्तरी भट्ट जचकी के लिए धमतरी के बठेना अस्पताल में भर्ती थी ! ईलाज का बिल बना १५००० रुपये , अर्थाभाव के कारण पैसा चुकाने में असमर्थ होने से उसे अस्पताल वाले डिस्चार्ज नही कर रहे थे। तब रामेश्वरी ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई, अख़बार और मिडिया की सहायता से पीड़ित के सहयोग की गुहार लगाई और उस निसहाय महिला के सहयोग के लिए आगे आकर स्वयं के पास से ३००० रूपये अस्पताल में जमा कर के जज्चा बच्चा को अस्पताल से डिस्चार्ज करवाने का पुण्य काम किया, अस्पताल प्रबंधन ने अपनी इस गलती के लिए माफ़ी भी मांगी ..मानवता का एक सजग चेहरा हमारे सामने आया !
देउरपारा के सुग्रीव की पत्नी की दोनों किडनी ख़राब हो गई थी। उसे लोगो से सहयोग लेकर शासकीय अस्पताल में दाखिल कराया। आर्थिक सहयोग एकत्र कर उसे बचाने का भरपूर प्रयास किया। उसे आज भी इस बात की पीड़ा है कि वो उस महिला को बचा नही पाई, उसकी बात निकलते ही आँखों से नमी छलक जाती है। पर उसके निधन के बाद भी जब उसके अंतिम संस्कार के लिए उसके परिवार वाले के पास पैसा नही होता तो रामेश्वरी लोगो से चंदा कर के , अपना भी सहयोग करती है , और उस मृतात्मा का अंतिम संस्कार सम्पन्न कराती है ....... गांववाले बताते है कि किसी का कोर्ट कचहरी का काम हो, आपसी विवाद हो, प्रत्येक काम में रामेश्वरी आगे आकर लोगो का मदद करती है। रामेश्वरी गाँव में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओ को शसक्त करने का प्रयास करती है और अपने आत्मीय व्यवहार से लोगो के दिलो में बस गई है।
देहात की नारी के संघर्ष को आपने ब्लॉग पर जगह देकर उसके कार्यों से परिचित करवाया। कम संसाधनों एवं आर्थिक विपन्नता से जूझ कर जीवन चलाना एवं अन्य लोगों की सहायता करना हर किसी के बस की बात नहीं। रामेश्वरी ने महिलाओं को स्वालम्बी बनाने का बीड़ा उठाया है, इसके लिए उन्हे साधुवाद तभा आपका भी आभार कि रामेश्वरी जैसी अनुकरणीय शख्सियत से परिचय करवाया।
जवाब देंहटाएंaabhar lalit ji.. dehat ki nari ne ek nai shuruwat ki hai.. rameshwari jaisi nariyo ko is blog me dhundkr parichay krana hi hmara uddeshya hai...aapka sadhuwad ......
हटाएंबहुत ही सुन्दर और प्रेरणात्मक प्रस्तुति है आपकी, सचमुच रामेश्वरी साहू कि हिम्मत कि दाद देनी होगी जो बीहड़ में रह कर भी इतने सारे पुण्य कार्य को अंजाम दे रही है. हमारे शासन को भी चाहिए कि उसकी यथासंभव मदद करे,
जवाब देंहटाएंइस प्रेरणादायक पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई और साभार
अब एक और नये सख्सियत का इंतज़ार रहेगा हमें आपके इस ब्लाग पर.
nilkamal ji aabhar aapka .. aapka intjar jald hi samapt hoga , hm ek nai shakhsiyat se aapka parichay jald hi karayenge . aapka bhi sahyog chahiye ..kisi aisi hi nari jo aap ke aaspas ho to unki story is blog ke liye jarur bhejiyega....
हटाएंवाह .... नमन ऐसी शख़्सियत को ...
जवाब देंहटाएंsangita ji aabhar aapka ..
हटाएंसार्थक और सुन्दर प्रविष्टि !
जवाब देंहटाएंthanks ali ji.
हटाएंबहुत सार्थक काम कर रही हैं आप.इन महिलाओं को आगे लाना ही चाहिए.
जवाब देंहटाएंthanks sikha ji... bhid se prithak ek chehra dhundne ka prayas rhata hai hmara....
हटाएंबहुत अच्छा और रचनात्मक प्रयास...शुभकामनाएं... आभार आपका
जवाब देंहटाएंthanks sandhya ji
हटाएंसाधुवाद की पात्र है आप . असली भारत तो गाँव में ही बसा है अभी भी
जवाब देंहटाएंthanks ashish ji... sach kaha aapne isiliye to dehat ki nari pr hmari najar gai hai..
हटाएंगांव में यत्र तत्र ऐसी महिलाएं मिल जाती हैं ..
जवाब देंहटाएंरामेश्वरी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा..
शुभकामनाएं !!
aabhar sangita ji...agar aapke pas bhi aisi koi stori ho to hme jarur bhejiyega is blog ki liye ...
हटाएंआप सार्थक कार्य कर रही हैं। समाज में नारियों द्वारा किए जा रहे उत्कृष्ट एवं समाज सुधार के कार्यों को सामने लाना जरुरी है। आपको सादर नमन सुनीता जी।
जवाब देंहटाएंthanks sudha ji... yhi uddeshya se dehatki nari ko prambh kiya hai .. aap ke yahan aisi koi nari ho to please uski story hme jarur bhejne ka kasht krenge is blog ke liye....
हटाएंaapki sahas aur lekhan kshmata ke hm kayal ho gye.aap hi bihad me jakr aisi chipi hui pratibha se hme parichit kra skti hai...aapko kotishah badhai........naman hai aapko aur aapki lekhni ko.... bahut bahut badhai........
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanywad........... hari om vaishnav ji.
हटाएंthanks hari om vaishnaw ji.
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