शनिवार, 14 जुलाई 2012

देहात की नारी -6- हसदा की कमला बघेल ...

 आइये आज हम आपको मिलाते है .. हसदा की कमला बघेल से .....
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देहात की नारी  -6-  हसदा की कमला बघेल ...
संस्कारधानी रायपुर से 40 किलोमीटर  दूर नवापारा से नदी पर कर के आगे चलते रहे तो सुन्दर हरे भरे से पेड़ो  के बिच से सुगम रास्ता जाता है हसदा नंबर 1 को ..खिसोरा हसदा के नाम से जाना जाता है ये गाँव ..बड़े करेली से कुछ ही दुरी पर स्थित है हसदा ... यहाँ का वातावरण काफी मोहक सा है .. विकास गाँव में स्पष्ट दिखाई देता है ..इसी गाँव में अनुसूचित जाति  की एक अलग सी बस्ती है .. हम जब उनकी बस्ती में पहुंचे थे कुछ साल पहले तो वहाँ की महिलाएं काफी पिछड़ी हुई थी . हम ने उन की एक बैठक बुलाई , और जागरूकता के लिए स्वयं सहायता समूह के बारे में मार्ग दर्शन प्रदान किया .. उन्हें समझाया की किसी और के खेत में मजदूरी करने के बजाये वो एक समूह बना ले और बैंक से वित्तीय सहायता लेकर कुछ एकड़ खेत में स्वयं की किसानी करे , जिस से उन्हें फायदा होगा ... और आत्मविश्वास भी बढेगा ...वो महिलाएं इतनी संकोची थी कि  बैठक में आने से संकोच ..कुछ जवाब देने से संकोच ... इतनी पिछड़ी कि ..कुछ भी नया करने से कतरा रही थी ..काफी समझाने के बाद उन लोगो ने के समूह बनाया , सभी महिलाये अनुसूचित जाति की ही थी ... समूह का नाम रखा "जय सतनाम स्वयं सहायता बहिनी समूह "
इस समूह की अध्यक्ष श्रीमती कमला बघेल .. सचिव धान  बाई  गायकवाड ...
एक साल बाद जब हम गये तो हमे बहुत अच्छा लगा की कमला बघेल गाँव के पंचायत चुनाव में जीत कर पञ्च बन गई है , इस का श्रेय  वो अपने समूह योजना को देती है ...हम जब मार्च में उन से मिलने हसदा गाँव गये थे वो हर बात का जवाब काफी आत्मविश्वास से देना सी ख गई थी ..मंच पर आकर अपने समूह के बारे में काफी कुछ माईक पर बताया उसने ...वो अब कुछ करना चाहती थी हम ने गाँव की बैठक में तुरंत 50000 रूपये का ऋण स्वीकृत कर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया , उन्होंने उस पैसे से कुछ छोटा मोटा काम शुरू किया .हमे अच्छा लगा .. इतने दिनों बाद ही सही उन में तबदीली तो दिखी ..और ये परिवर्तन भी सकारात्मक ..
हम ने उन्हें काफी कुछ बाहर के और महिलाओ की सफलता की कहानी भी बताई ... उनका मोहल्ला अलग था , उनकी बैठकें अलग होती थी .. पर हम ने सभी मोहल्ले के समूह की एक साथ एक जगह में ही एक साथ बैठक लिया .. उन्हें ये समानता का भाव बहुत अच्छा लगा ..वो बार बार हमे शुक्रिया अदा करती रही ,, उनका स्नेह , उनका सम्मान हमे कुछ और करने की प्रेरणा दे रहा था ...
आज अचानक सुबह सुबह हमारे आफिस  पहुँचते ही जैसे ही हम महासमुंद के लिए रवाना होने वाले थे ,, हमारे कमरे में दाखिल हुई .. कमला बघेल और धान बाई गायकवाड उनके साथ उनके समाज के दो और वरिष्ठ सदस्य  भी थे ...उन्होंने हमे अभिवादन किया ,, हाथ मिलाया और बताया कि , उन्हें अब गाँव के स्कुल में हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को कार्यक्रम में सम्मान पूर्वक बुलाया जाता है ..और वो समूह की तरफ से बच्चो को पुरुस्कार भी प्रदान करती है .. गाँव में उनकी इज्जत भी बढ़ गई है ..शासन की ओर से उन्हें 75 डिसमिल जमीन भी महिला भवन बनाने की सहायता भी मिली है जिसे कुछ आथिक मदद से एक भवन भी उन्होंने बना लिया है ...इस साल गाँव के साहू समाज के 2 बच्चो  का एडमिशन भी समूह के सिफारिश से संभव हो पाया ..समाज और गाँव में किसी की मदद को ये महिला हमेशा आगे आती है ...अपने महिला भवन में इस साल वो बोरिंग भी लगाने को प्रयास रत है ताकि आसपास के लोगो को पेयजल की उपलब्धता हो सके ...भवन में बढ़ लगाकर वृक्षारोपण की योजना भी वो बताती है ... उस ने बताया कि बैंक ऋण की शतप्रतिशत अदायगी उस के समूह ने कर दिया है .. अब वो 1लाख रूपये का ऋण लेकर 15 एकड़ भूमि रेग  में लेकर कृषि करना चाह  रही है ...
हम ने जो सपना देखा था वो आज हमे पूरा होता दिखा ... एक छोटे से गाँव की इस महिला का आत्मविश्वास ..इतना कि हम से मिलने वो रायपुर तक आई .. अपने आप में तबदीली की कहानी वो खुद ही बयां कर रही है ..
अब वो किसी की सहायता की मोहताज नही है ...सामाजिक सम्मान ...अपनापन ,, सब कुछ तो उसे मिल चूका है ..फिर भी प्रगति के रस्ते में उस के कदम रुके नही है ...वो बढ़ना चाहती है .. कदम कदम पर उस का  आत्मविश्वास .... हमे सुखद आश्चर्य हुआ कि  कभी स्कुल का मुंह नही देखने वाली ये अनपढ़  जो साक्षरता मिशन में साक्षर हो गई है , अपना नाम लिखना सीख गई है ... आज अपने गाँव में एक सम्मान जनक स्थिति में जीवन यापन कर रही है .. और जरूरत मंद लोगो की मदद भी करने में सक्षम  हो गई है ...
यही परिवर्तन तो देखना चाहते थे हम ....
जय हो छत्तीसगढ़ की ऐसी नारियों का ... आज कमला बघेल को सलाम करने को जी चाह रहा है .. उस के साथ हर कदम में साथ देने वाली धान बाई गायकवाड को भी ....
नारी जाग गई .....

शनिवार, 9 जून 2012

देहात की नारी - ५ -   भंवरपुर की बसंती देवांगन ...

भंवरपुर , उड़ीसा से लगा हुवा एक छोटा सा गाँव ,, बारनवापारा की सुंदर भूमि से कलकत्ता राष्ट्रीय मार्ग में आगे बढने पर बसना के आगे से लगभग २८ किलोमीटर बाये ओर जाने से प्रकृति की सुंदर भेंट ,! रायपुर से लगभग १४५ किलोमीटर बसना .. राह में छोटी  छोटी पहाड़ियां .. पहाड़ी में शिवालय .....सड़क के दोनों ओर खुबसुरत जंगल ............सुनसान वीराने दौड़ती हुई राज मार्ग की बड़ी बढ़ी गाड़ियाँ ........राह में दो हादसे की तस्वीर ... जीवन सफ़र में कभी भी कुछ भी अनायास घटित हो सकता है ..........हम बढ़ते जा रहे थे ... उस गाँव को देखने जहाँ हर घर में बुनकर का काम होता है , हर महिला और पुरुष जहाँ अपने परम्परगत व्यवसाय को आज भी जीवित रखने में कामयाब है ! कहीं बुनकर समिति की सफ़ेद चादर बन रही है , कही सलवार सूट, दुपट्टा तैयार किया जा रहा है , कही गमछा , कहीं  कमीज का कपडा ........हर कपडे में उड़ीसा प्रिंट की झलक साफ दृष्टिगत हो जाती है !  लो पहुँच गये हम भंवरपुर.......! ये है यहाँ का कोआपरेटिव बैंक .. जहाँ से बुनकरों को अपने व्यवसाय के लिए वित्तीय सुविधा भी मिलती है !  आगे चले हम ढूंढने इस गाँव की किसी खास महिला से मिलने .........कदम रुक गये हमारे .. पास में खेलते छोटे छोटे २ नन्हे से बच्चे ,, बाहर चारपाई पर बीडी पीता बुजुर्ग स्वसुर ......पास में सुपा में चांवल साफ करती हुई सास ......और इनकी बहु "बसंती देवांगन " चूल्हे के बाजु में अपना बुनकर के मशीन में फटाफट हाथ चला रही है ,....२०-२५ मिनट हम एकटक उनके काम को ही देखते रहे ......गजब की फुर्ती थी इन कोमल हाथो में ........१/२ मीटर कपडा बुन गया देखते देखते ............
जब उस का ध्यान हमारी ओर गया तो कुछ संकोच से वो उठ खड़ी हो गई ..उनके गाँव के एक सज्जन हमारे साथ थे , उन्होंने हमारा उनका परिचय कराया ..........आत्मिक आवभगत से चाय पानी वो लाती रही , हमारे मना करने के बाद भी .........हम ने उसे बगल में बैठाया ......हमारी उत्सुकता ने उनसे प्रश्न करना शुरू कर दिया

बसंती मात्र छटवी पास है , वो कहती है कि उनके गावो में पढाई को जादा महत्व नही दिया जाता है !  २० साल में उसका विवाह भंवरपुर के मंगल प्रसाद से हो गई , २ बच्चे है , ..बसंती की उम्र पूछने पर वो अटकल लगा कर कहती है कि मै शायद ३० साल की हो गई हूँ  ..! उनकी मासूमियत हमे बहुत पसंद आई .......बात करते करते वो धुल से सने बच्चे को ले जाकर मुंह धुलाती है .. गमछे से अंगोछ  कर पावडर लगाती  है , कंघी करती है ....फिर उस के माथे पर एक काजल का टिका लगा कर चूम लेती है ...........बड़े धीरे से बच्चे के कान में फुसफुसाकर कुछ कहती है .....बच्ची शर्माते हुए हमे " नमस्ते मेडम जी " कहती है , और वहां से भाग जाती है .............
बसंती का ये रूप हमे बहुत भाता है .......एक माँ जो अपने बच्चे को सुंदर बनती है , दुनिया की नजर से बचाने, काजल का टिका लगाती है , फिर कानो में सीख दे कर संस्कारित बनाती है ,............ एक माँ का वात्सल्यमयी  रूप की झलक बसंती के सौंदर्य को और बढा देती है ..!


         हम पुनः बसंती से मुखातिब होते है ..उस से पूछते है कि ये काम कब और कैसे शुरू किया ....वो हंसकर कहती है कि शादी के पहले से ही मात्र १८ साल की उम्र में वो कपडे बुनना सीख गई थी ,, शादी के बाद ससुराल आकर वो इसे पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रही है .!


कुछ प्रश्न बसंती से -:
प्रश्न - एक दिन में कितने कपडे बना लेती हो ?
जवाब - लगभग १० से १५ मीटर .
प्रश्न- एक मीटर बनाने से तुम्हे कितना मुनाफा होता है ?
वो हसकर बताती है , धागा सूत, रंग सब बुनकर समिति वाले देते है , एक मीटर कपडा बुनने का उसे २० रूपया मिल जाता है .. कुल मिलाकर २०० से ढाई सौ रूपये मिल जाते है रोज ,,,
प्रश्न- क्या पति भी उसके साथ बुनाई का काम करता है ?
नही वो बढाई का काम ठेका में करवाता है .बड़े चाव से लकड़ी की आलमारी , दीवान और पलंग हमे दिखाती है , साथ में बताती है कि जंगल बहुत है , आसानी से लकड़ी उपलब्ध  हो जाती है और इसमें मुनाफा भी इतना हो जाता है कि गृहस्थी का गुजारा हो जाता है !
प्रश्न- तो तुम क्यों कर रही हो ये काम ?
 - ये हमारा पुश्तैनी कला है , हम देवांगन है , बुनकर जाति के लोग , हम अगर अपनी परंपरा को जीवित नही रखेंगे तो आने वाले समय में इस काम को कौन जान पायेगा , या समझ पायेगा , हमारे साथ ही ये कला भी ख़तम हो जाएगी ,, अपनी संस्कृति की रक्षा करते हुए हम चार पैसा कमाकर अपने परिवार की मदद कर रहे है तो हमे इस में ख़ुशी भी मिलती है ! और आगे जाकर बच्चों को पढ़ना है अच्छे स्कुल में , उन्हें बाबु बनाना है , अच्छे कपडे ....अच्छी सी  नौकरी ... एक अच्छी सी जिन्दगी ........बहुत से सपने है जो एक की कमी से पुरे नही हो सकते ..........काम का काम और चार पैसे की आमदनी ........ ठीक है न मेडम...........
हम अवाक से देखते रह गये .. कौन कहता है कि छठवी पास महिला की सोच ऊँची नही हो सकती ...............
सलाम........ मेरी बहना.......... घर के काम काज को बखूबी ने निपटा कर एक उत्तम सोच रखने वाली भंवरपुर की इस नायिका बसंती देवांगन को ...............

बुधवार, 23 मई 2012

देहात की नारी - ४- लक्ष्मी धीवर ....

देहात की नारी - ४- लक्ष्मी धीवर ....
आइये आज परिचय कराते हैं . आपको कुरूद (मंदिर हसौद) की लक्ष्मी धीवर से .---::
नाम - लक्ष्मी धीवर
उम्र - ४७ साल .
पति का नाम - पतालू राम धीवर ..
शिक्षा - छठवीं पास .
निवासी - कुरूद (मंदिर हसौद)


१८ साल में शादी .. फिर एक आम जिन्दगी को जीने वाली लक्ष्मी , औरो से खास कैसे बन गई  ! आइये जानते है उन पहलुओ को ... एक अच्छी सोच , कि उसे कुछ कर दिखाना है , कब , कैसे , उसे नही पता ,      पर कहीं एक जूनून था लक्ष्मी में !  वो छोटा मोटा जनसेवा का काम करने लगी !  धीरे धीरे ग्रामवासियों में उसकी पहिचान बनी ! मात्र ३ एकड़ खेत ही था उसके जीविकोपार्जन का माध्यम ! संतुष्ट थी वो अपने जीवन से ! उसे पैसे के लिए नही बल्कि लोगो के लिए कुछ करने की धुन सवार थी  ! उसने अपने जैसी कुछ गरीब महिलाओ को एकत्र कर के एक जाग्रति समूह बनाया !  ५० रुपये प्रति माह  जमा कर के उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया ...कुछ अंशपूंजी इकठा होने पर उस ने समूह के साथ मिल कर पहले मशरूम उत्पादन का काम शुरू किया ! ये काम अधिक न जमा तो अगरबत्ती निर्माण का काम आरम्भ किया , उसके बाद आचार बनाने का काम शुरू किया ! वो कहती है कि काम सभी अच्छा चल रहा था , पर उन्हें परेशानी थी  मार्केटिंग की ! जो प्रायः हर महिला को आती है ! काम पढ़ा लिखा होने से उसे विपणन में दिक्कत आने लगी ! इस लिए उस ने इस काम को बंद कर के गाँव में ही जमीन लेकर ईंटा भटठा का ठेका अपने समूह के माध्यम से लेना शुरू किया ! ये काम चलने लगा ! और वो अपनी साथियों की मदद कर के खुश रहने लगी !
बार - बार फिर भी उस के मन में एक कसक उठती , कि वो और कुछ अच्छा करे ! उन से बात करने पर हमे ज्ञात हुआ कि लगभग ८ साल पहले उस के नेक काम को देख कर गाँव वाले उसे सरपंच बनाने के लिए खड़ा भी किया था ! पर चुनाव के दांवपेंच से अनभिज्ञ लक्ष्मी को लगभग ५० वोटो से शिकस्त मिली ! बाद के चुनाव में वो उप सरपंच चुनी गई ! 

              कुछ ऐसे बिंदु जो लक्ष्मी को खास बनाते है ...  जनसेवा की प्रमुख बिंदु  -: ग्राम कुरूद में ३ आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन कर के पोषक आहार का वितरण  तो वो करती ही है , इसके अलावा ग्राम के बोरिंग की सफाई , तालाब की सफाई , का काम भी अपनी सहेलियों के साथ मिल कर ख़ुशी ख़ुशी करती है ! उस की २ प्यारी सखी है ,  आशा मिश्रा . और माधुरी दीवान , जिनके सहयोग से ग्राम कुरूद में स्वच्छ वातावरण निर्मित करने में उसे आसानी होती है ! वो चहक कर हमे बताती है कि गाँव वालो के सहयोग से पुरे गाँव कुरूद की महिलाएं सुनता सलाह कर के कैसे गाँव में "नशामुक्ति अभियान " चलाती है ! वो कहती है की आधी रात को भी कहीं गाँव में दारू होने की सुचना मिलती थी तो पूरी महिलाओ के साथ उस जगह में धावा बोल कर वो लोग उस जगह से शराब जप्त कर लेते थे, और थाना में जमा कर देते थे ! फिर पुलिस को सुचना देकर उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करते है !  ये छापा मार कार्यवाही कई दिनों तक चलती रही ! इस में जरुरत पड़ने पर वो सीधे मंत्री ननकीराम कँवर को भी फ़ोन लगा कर मदद मांग लेती थी ! अधिकारी दौड़े चले आते , और उनका नशामुक्ति अभियान सफल होते गया ! गाँव में इनके दर से अवैध शराब रखना बंद सा हो गया ! गाँव से दूर मोनेट के पास अब इस भंडार में रखा जाता है, शराब ! वहां भी इनकी टीम पहुंची पर ये गाँव से बाहर है , और बाहर ही रहेगा , समझकर इन्हें वापस भेज दिया गया !

 गाँव में निर्धन कन्या का विवाह भी कराया गया है , जिसमे पिता की साया से वंचित भारती यादव , या गरीब बाप की बेटी भगवती धीवर , अहिल्या साहू का नाम उनकी जुबान पर है ! दत्तक पुत्री योजना में हर साल १० बच्चो को  कापी- किताब . जूता मोजा , बस्ता आदि की सहायता दिलवाने में मदद करती है ! इस साल उनके प्रयास से  अनाथ बालिकाएं  कंचन यादव . कुसुम , भगवती पटेल , ज्योति सोनी  जैसी कई बालिका इस सुविधा का लाभ लेने में सफल हो पाई !  वो बताती है कि उन्हें आर्थिक मदद से मोनेट फ़ौंडेशन से   मिलता है ! पर ये सभी काम एक माध्यम या पुल के रूप  वो निःशुल्क और निःस्वार्थ रूप से अपने समूह और सखियों के साथ करती है ! लाभ लेने वाले जरुरत मंदों को ढूंढ़ कर मदद पहुँचाने के बदले में उन्हें क्या मिलता है ? हमारे इस प्रश्न के जवाब में वो हंस कर कहती है कि ढेर सारा प्यार और सम्मान  के साथ मिलती है उसे आत्मिक संतोष  !
            गाँव में उनकी सखियाँ और गाँव वाले बताते है कि किसी भी घर में कोई भी बीमार या एक्सीडेंट हो जाये तो बीमार के साथ रायपुर जाना (कई बार अपने खर्चे पर भी ), किसी बड़े हास्पिटल में एडमिट करने से लेकर , अगर कोई साथ न हो तो हास्पिटल में उसके साथ रहना .. लक्ष्मी की एक ऐसी खास आदत  है , जिसके कारण सब उसे प्यार और सम्मान के साथ देखते है ! इस निःस्वार्थ काम के लिए उसे एक बार आरंग में महिला बाल विभाग से उत्कृष्ट  काम के लिए पुरुस्कृत भी किया गया है !
          हमे गर्व है कि मिडिया की चमक -धमक से परे रह कर भी लक्ष्मी  समाज सेवा के कामो में अपनी निरंतरता बनाये रखा है ...! लक्ष्मी  धीवर को हमारा और हमारे ब्लाग जगत के सभी साथियों की ओर से प्रणाम ! सलाम ! नमस्कार !........

बुधवार, 2 मई 2012

देहात की नारी -3- आज मिलाते है हम आपको,. लवन की शाहिदा बेगम से .........

देहात की नारी -3- 
आज  मिलाते   है,   हम आपको,.  लवन की शाहिदा बेगम से .........
हल्का गेहुँवा रंग .. मासूम सी सूरत .. पसीने पोंछती हुई हमारे कमरे मे दाखिल होती उस महिला  के चेहरे में एक अनोखी चमक थी .. मेहनत की चमक ..सफलता की चमक .... उस महिला का आत्मविश्वास देखकर हमे काफी ख़ुशी हुई ...  

            पानी पीकर वो आराम से हमारे सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई ...जब हम ने उसे अपने पास आने कारण पूछा तो उस ने कहा की  वो कुछ ऐसा करना चाहती है जिस से उसे  संतुष्टि मिल सके .. हम ने बातो बातो में उस से जो जानने का प्रयास किया वो इस प्रकार है ...
नाम - साहिदा बेगम ...
उम्र  - 33 साल .
मायका और ससुराल दोनों - लवन ..
शौक - कुछ हटके करना , जिस से महिलाओ में आत्मविश्वास बढ़ा सके ...
अल्पक्षर साहिदा ने बताया की , वो 2009 में अपने जैसी गरीब 10 महिलाओ को लेकर एक समूह बनाई और 100 रूपये मासिक जमा करके बैंक में 50000 रूपये ऋण के लिए आवेदन दिया , उस पैसे से उसनेदोना पत्तल बनाने वाली एक मशीन ख़रीदा , कागज के दोना पत्तल बना कर आस पास के गांवो कोलिहा , बघमुडा ,तुष्मा , शिवरीनारायण  में जाकर वो खुद बेचती थी , सर्विस अछ्ही होने के कारन अब गांव वाले उस के पास आर्डर ले के आते है और खुद मॉल भी आकर ले जाते है ! इस काम में शाहिदा का साथ पुष्पा तिवारी , पारसमणि पटवा ,शकुन साहू आदि कई महिलाएं भी मदद करती है  ! जात पात के बंधनो से परे ... बधाई योग्य ....
   एक बात जो हमे शाहिदा में बहुत पसंद आई वो ये है की , वो इस नेक काम के अलावा अपने समूह के द्वारा नगर निगम के सुलभ शौचालय का सफाई ठेका मई 2011 से ले रही है , और 3 स्वीपर रख कर अपना काम बखूबी निभा रही है ! इस काम को एक चुनौती के रूप में स्वीकारा था उसने और आज 5000 रुपये का मासिक लाभ इस काम से अपने समूह को दिला रही है ... आगे उसका इरादा और बुलंद है ...किसी  तरह अपने और अपने जैसे लोगो को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर कर के वो अपने लवन को छत्तीसगढ़ के नक्शे में एक नया पहिचान देना चाहती है ....
 
हम और हमारे जैसे लोग सदा उनकी मदद को उनके साथ है , यही विश्वास वो लेकर संस्कारधानी रायपुर से विदा लेती है , साथ ही एक वादा भी , की हम इसी माह उसके काम को देखने एक बार लवन अवश्य आये ...
बधाई हो , शाहिदा ... तुमसे 3 बाते हमने सीखी ...
 1. इरादे बुलंद हो तो कोई काम छोटा नही होता ..
 2. जात पात के बंधन नेक काम में मायने नही रखते ..
3. सफलता पाने के बाद भी रुकना नही , मंजिले अभी और भी है , बस रास्ते तलाशने होते है ....
सलाम ...........शाहिदा बेगम ..........

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

आरंग , भानसोज की पुष्पा साहू ..........

आरंग , भानसोज की पुष्पा साहू ..........
              हम किसी काम से भानसोज गए थे . वहां भीड़ में भी एक अलग सा चेहरा हमे नजर आया . सावली सी सूरत और लम्बा छरहरा बदन ........आवाज में तेज , आँखों में चमक ......... नाम पूछने पर पता लगा , ये पुष्पा साहू है ..... पुष्पा की कहानी उसी की जुबानी ...........
            
 मेरा नाम पुष्पा है. मेरा जन्म १ अगस्त १९६४ को ग्राम देवर तिल्दा में हुआ था .पिता सेवाराम साहू ,माँ फूलमत साहू , मेरा परिवार आम गाँव के परिवार जैसा ही था . सन १९६९ में प्रायमरी में मुझे स्कुल में भर्ती कराया गया ..तब से स्कुल के खेल कूद में भाग लिया और हमेशा प्रथम आती रही , पुरुस्कार मिलता तो मेरा उत्साह दुगुना हो जाता ...पांचवी प्रथम श्रेणी में पास किया . कनकी में से आठंवी तक की पढाई पूरी की ' उस समय सायकिल से स्कुल जाती थी ! गाँव और परिवार के लिए इतनी पढाई काफी थी , इसलिए मेरी शादी जनकराम साहू से २८ जून १९८१ ने कर दी गई ! एक लड़की और दो लड़का है .  पति  साउंड सर्विस का मामूली सा बिजनेस और खेती किसानी करते थे !

 आर्थिक तंगी के चलते बच्चो को अच्छी शिक्षा देना मुश्किल लग रहा था !गाँव के स्कुल में चपरासी के पद के लिए मैंने भी फार्म भरा .पर ससुराल वाले और मेरे पति ने मना  कर दिया . मै भी मन मसोस कर रह गई ! पर मन में कही न कही ये इच्छा थी कि कुछ ऐसा जरुर करू जिस से मेरी स्वयं की निजी पहिचान बन सके ! खेती किसानी में पति का सहयोग करने के अलावा मै कुछ ऐसा करना चाहती थी जिस से मुझे मेरे नाम से पहचान मिल सके ....

             मैंने सुना महिलाओ के लिए स्वयं सहायता समूह की योजना बैंक के द्वारा चलाई जा रही है .. सहकारी बैंक के कुछ अधिकारियो से मै जाकर मिली  , उनसे इस योजना की जानकारी ली .  ये सन २००० की बात है , मैंने अपने घर में ही भान्सोज की १५ महिला को इकट्ठा किया , उन्हें समूह योजना की जानकारी दी . पहले तो महिलाओ ने रूचि नही ली. पर बैंक अधिकारियो और मेरे समझाने पर वो सब समूह बनाने को राजी हो गई  !
            स्वयं सहायता समूह ने मुझे एक नया मंच दिया .  अध्यक्ष के रूप में बैंक से लोन लेकर अपने ही घर में एक मसाला मशीन लगाया , और समूह के नाम के अनुरूप  उन्नति की ओर हम लोग अग्रसर होने लगे  ! खेती के बाद हम सब बहने मिल कर मसाला चक्की में धनिया , मिर्च . गरम मसाला . पीस कर छोटा छोटा  पेकेट बना कर गाँव में बेचना शुरू किया  ! अच्छी गुणवत्ता और कम कीमत के कारण हमारा मसाला लोकप्रिय होते गया . पर इस व्यवसाय में लाभ कम था और हम सदस्य बहने ज्यादा .! काफी विचार के बाद हम ने पुनः बैंक से लोन लिया और  रेग पर कृषि का काम आरम्भ किया ! चूँकि समय पर लोन पटा देते थे इस लिए हर साल उस से और अधिक राशी का कर्ज लेकर हमने अधिक मात्र में भूमि रेग पर लिया और किसानी काम किया . परिणाम ये हुआ कि हमारा लाभ का प्रतिशत दिनों दिन बढ़ता गया ! महिलाओ को भी एक अच्छा अवसर मिला कि वो अपने परिवार के लिए कुछ आर्थिक मदद के काबिल बनने लगी !
         
     गाँव में इस अच्छे काम के कारण सभी मुझे जानने लगे . सन २००५ में मै  पंच बनी !  गाँव के हर कार्य में मैंने बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया  ! महिलाओ के लिए संसद निधि से एक रंगमंच का निर्माण किया गया , इसके निर्माण में भी हुई धांधली का पैसा समूह के संयुक्त प्रयास से वापस जमा कराया गया  ! 

             अपनी शिक्षा आगे पूरी न हो पाने का गम आज भी मुझे सताता है ! इसलिए सन २००३ से हर साल ,गाँव के आठंवी , दसवी  और बारहवीं में प्रथम आने वाले बच्चो को मै एक प्रोत्साहन पुरुस्कार देती हूँ , जिस से बच्चो में पढाई के प्रति उत्त्साह बढे !  स्कुल कि गरीब लड़की के लिए कापी , पेन , पुस्तक का सहयोग भी समय समय पर करती हूँ  ! धार्मिक कामो में , यथाशक्ति मदद करती हूँ !     पुष्पा खेल खेल में बच्चो को शिक्षा ज्ञान सिखाती है , उन्हें कई अच्छी बाते भी सिखाती है  
             गाँव के लोगो से हमारी ३ घंटे तक चर्चा होते रही  ! पुष्पा के और भी कई चेहरे हमारे सामने आये ! वो २००४ से मितानिन का भी काम कर रही है !घर घर जाकर हाल चाल पूछना , मरीजो को वक्त पर दवाई देना पुष्पा के काम में ही नही बल्कि उसकी ख़ुशी में शामिल है !गर्भवती महिलाओ की देखभाल , आंगनबाड़ी में या स्वास्थ्य केंद्र में उसका पंजीयन ,मोतियाबिन्द के आपरेशन में मरीजो की मदद ..गरीब और लाचार बीमार के यहाँ दवाई पहुंचाना ,साधन सलाहकार के रूप में  नशबंदी करवाने में और अन्य  सलाह देना, जैसे बच्चो के बीच में  अंतर  क्यों जरुरी है , आदि महिला स्वास्थ्य की दिशा में कार्यरत ... पुष्पा साहू  ! इस सब कामो के लिए
उसे तीन बार पुरुस्कार भी मिला है ! सामाजिक कार्यो के कारण वो महिला मोर्चा की  सदस्य बनी , और बाद में १५ अगस्त २०११ को भारतवाहिनी की सदस्य बनी , आज वो अपना आईकार्ड बड़े गर्व से सभी को दिखाती है !
               आज पुष्पा का बड़ा लड़का स्काई ऑटो मोबाईल में मेनेजर है , छोटा लड़का पॉवर प्लांट्स में जूनियर इंजिनीयर  है , लड़की शिक्षिका है ! पुष्पा का मानना है कि महिलाओ का शिक्षित होना आवश्यक है , अगर महिलाये शिक्षित होंगी तो घर में ख़ुशी और विकास के नए आयाम रचने में आसानी होगी !
                 खुद चाहकर भी आगे न पढ़ पाई पुष्पा आज अपने साहस और मेहनत से अपनी एक पृथक पहिचान बना चुकी है ! आज भान्सोज में पुष्पा साहू को लोग उसके कामो के वजह से जानते है ! नारी सशक्तिकरण की एक मिसाल है , पुष्पा साहू.....................




       

रविवार, 8 अप्रैल 2012

देऊर पारा की रामेश्वरी


हम आपको ले चलते है, महानदी के उद्गम स्थान सिहावा। श्रृंगी ऋषि की धरा ... नगरी से मात्र 6 किलोमीटर की दुरी पर बसा है देऊरपारा ... बहुत छोटा सा गाँव... सरल से लोग .. जंगलो और पहाड़ो के बीच मनोरम सी प्रकृति की अनुपम सौगात है ये जमीन .... घुमने का शौक ले जाता है हमे सिहावा नगरी में ... महानदी के पावन उद्गम स्थल का अवलोकन करते हम अपने साथियों के साथ ....और वहां के कुछ स्थानीय लोगो से वार्ता कर रहे थे . वे सुना रहे थे कि यह स्थान भगवन परशुराम  जी से भी जुड़ा हुआ है .. उपर पहाड़ी में उनका भी मंदिर है... आदि आदि............।गाँव में घूमते हुए हम यहाँ के प्रसिद्ध  कर्णेश्वर  मंदिर पहुँचते है , वहां  हमारी मुलाकात होती है .. लाल रंग कि साड़ी पहने एक महिला से उससे बातचीत का सिलसिला आरम्भ होता है............

इसका नाम रामेश्वरी है, यहीं देऊर पारा में रहती है, घर के कार्य से समय निकाल कर समाज सेवा करती हैं और गाँव की महिलाओं को अधिकारों के प्रति जागरुक करने का प्रयास करती हैं। बातो का सिलसिला लगभग २ घंटे तक यूँ ही चलता रहा, इस बीच मंदिर का पुजारी, गाँव के अन्य बड़े बुजुर्ग, और काफी महिलाएं भी हमारे साथ आकर जुड़ते जाती है...हमारी जिज्ञासा बढ़ते जाती है, रामेश्वरी का व्यक्तित्व प्रभावशाली है और हम उस बीहड़ में रहने वाली रामेश्वरी साहू को और अधिक जानने का प्रयास करते  है.... जो तस्वीर उनकी हमारे सामने आई, वो इस प्रकार है। मात्र आठंवी तक पढ़ी रामेश्वरी गाँव में सन १९८८ से  प्रौढशिक्षा के माध्यम से अपने ग्रामवासी को शिक्षित करने का सतत प्रयास कर रही है, जिससे कई लोग जो पहले अंगूठा लगाते थे अब अपना नाम लिखना सीख गये है। १९९७ में उसने राजनीति के क्षेत्र में भी कदम रखा. जब महिलाओ के लिए कोई आरक्षण नही था, वो तीन पंचायतो छिपलीपारा, बिद्गुड़ी और भडसिवाना से जनपद सदस्य के रूप पहला चुनाव जीती। सहकारी समिति का चुनाव भी जीतकर वो समिति की उपाध्यक्षा बनी।

समाजसेवा के क्षेत्र में उसके अद्भुत रूप से हमारा परिचय हुआ, वह अनेक योजनाओ के माध्यम से अपने और आसपास के गांवो की महिलाओ और लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण देती है और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है ! अनेक शासकीय योजनाओ का लाभ अपने ग्रामवासी को मिले इस लिए खादी ग्रामोद्योग के सहयोग से देवपुर में ३ माह का सिलाई प्रशिक्षण भी दिया, साथ ही गाँव भीतररास की अत्यंत ही गरीब महिलाओ को निःशुल्क प्रशिक्षण अपनी ओर से भी दिया, जिसका सुखद परिणाम ये है कि वो आज इसे अपने व्यवसाय के रूप में अपनाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई है  !

२००१ में देउरपारा के  राजकुमार भट्ट कि पत्नी  धन्वन्तरी भट्ट जचकी के लिए धमतरी के बठेना अस्पताल में भर्ती थी ! ईलाज का बिल बना १५००० रुपये , अर्थाभाव के कारण  पैसा चुकाने में असमर्थ होने से उसे अस्पताल वाले डिस्चार्ज नही कर रहे थे। तब रामेश्वरी ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई, अख़बार और मिडिया की सहायता से पीड़ित के सहयोग की गुहार लगाई और उस निसहाय महिला के सहयोग के लिए आगे आकर स्वयं के पास से ३००० रूपये अस्पताल में जमा कर के जज्चा बच्चा को अस्पताल से डिस्चार्ज करवाने का पुण्य काम किया, अस्पताल प्रबंधन ने अपनी इस गलती के लिए माफ़ी भी मांगी ..मानवता का एक सजग चेहरा हमारे सामने आया  !

देउरपारा के सुग्रीव की पत्नी की दोनों किडनी ख़राब हो गई थी। उसे लोगो से सहयोग लेकर शासकीय अस्पताल में दाखिल कराया। आर्थिक सहयोग एकत्र कर उसे बचाने का भरपूर प्रयास किया। उसे आज भी इस बात की पीड़ा है कि वो उस महिला को बचा नही पाई, उसकी बात निकलते ही आँखों से नमी छलक जाती है। पर उसके निधन के बाद भी जब उसके अंतिम संस्कार के लिए उसके परिवार वाले के पास पैसा नही होता तो रामेश्वरी लोगो से चंदा कर के , अपना भी सहयोग करती है , और  उस मृतात्मा का अंतिम संस्कार सम्पन्न कराती है ....... गांववाले बताते है कि किसी का कोर्ट कचहरी का काम हो, आपसी विवाद हो, प्रत्येक काम में रामेश्वरी आगे आकर लोगो का मदद करती है। रामेश्वरी गाँव में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओ को शसक्त करने का प्रयास करती है और अपने आत्मीय व्यवहार से लोगो के दिलो में बस गई है।

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

देहात की नारी की आवाज

                 "देहात की नारी" ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम इस  ब्लॉग पर  प्रकाशन प्रारंभ करें , इसके पूर्व कुछ परिचय नवीन ब्लॉग का देना चाहेंगे ........


                  हमारा देश सांस्कृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है  ! शहरी क्षेत्रो में जहाँ एक ओर प्रचार के समग्र संसाधन मौजूद है , जहाँ समाजसेवा को एक फैशन के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है , किसी एक स्थान से पौधे उखाड़ कर दूसरी जगह रोप दिया ,और छा गये मिडिया में ...बन गई  हेड लाइन ......अमुक महिला के द्वारा वृक्षारोपण किया गया ..!ऊँची हील की सेंडिल ..होंठो में गहरी लिपिस्टिक , महँगी साड़ियाँ, और वित्तीय साधनों से पूर्ण कई समाज सेवी संगठन की तस्वीरें आपने इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मिडिया में अक्सर देखी होंगी , पर समाजसेवा का जो रूप मैंने गाँव में देखा है , जो जज्बा देहात की नारी में देखा है, मेरा रचना धर्म ऐसी ही कुछ खास नारियों से अपने साहित्य जगत के मित्रो से परिचय करवाने के उद्देश्य से मैंने इस नवीन ब्लाग "देहात का नारी " का आज लोकार्पण करने जा रही हूँ... मित्रो से आग्रह है कि बहुत सामान्य सी दिखने वाली , बेहद घरेलु किस्म कि इन देहात कि नारी से मिलने , और उसमे निहित संकेत को अपना स्नेह जरुर प्रदान करेंगे।


                   मेरा ये मतलब कतई नही है कि शहरी महिलाएं समाज सेवा मात्र दिखावा के लिए करती है, फ़िर भी अधिकतर प्रगतिशील कहलाने वाली दिखावे से परे नहीं है। अंग्रेजी बोल कर ग्रामीण महिलाओं के साथ फ़ोटो खिंचा कर अपना उल्लू सीधा कर नारी जागरण की दुकान चलाने वाली तथाकथित नारियों की भी कोई कमी नहीं है। मेरा किसी से कोई विरोध नही है, पर मेरी दृष्टि में साधन सपन्नता का ढोंग करने वाली महान नारियों की बजाए, महान वो देहात की वो महिला है , जो सीमित साधनों में रह कर भी अपने आवश्यकताओ से  बचाकर कुछ करने का प्रयास कर रही है ! अल्पक्षर है , गरीब है , दिन दुनिया के रस्मोरिवाज से अपरिचित है , पर मेहनती है , आत्मनिर्भर है , सरल है , सहज है , और बनावटीपन से कोसो दूर है , मेरी लेखनी सलाम करती है उन महान नारियो को , ग्रामो में बसती है  ! समय - समय पर इस ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास होगा कि उन नारियो से आपका रूबरू करा सकू ..


             आज बस एक संक्षिप्त सा परिचय इस ब्लॉग का ....